आओ मिलकर लाइब्रेरीज़ बचाएं सूचना एवं ज्ञान को एकत्रित,
व्यवस्थित, और वितरित कर भारत को ज्ञान के प्रकाश से जगमगायें
इसे एक विडंबना कहूं या लाइब्रेरी का भाग्य, “सूचना एवं ज्ञान को एकत्रित, व्यवस्थित, और वितरित” करने वाली यह ज्ञान गंगा आज विलुप्त होने की कगार पर आ खड़ी हुई है। ज्ञान की यह निर्मल गंगा न जाने कितनी शताब्दियों से ज्ञान की खोज में निकले पथिकों की ज्ञान की पिपासा को शांत करती आ रही है। इस ज्ञान
की गंगा में डुबकी लगा कर न जाने कितने ही व्यक्ति अज्ञानी से ज्ञानी और ज्ञानी से
महाज्ञानी बनते जा रहे हैं। पर आज इस आधुनिक युग का दुर्भाग्य देखिये कि आधुनिकता की
मोह माया से मोहित हो कर इस ज्ञान गंगा के भविष्य पर ही सवाल खड़े किये जा रहे हैं,
और आज यह समाज पर एक बोझ नज़र आ रही है।
हर
देश, हर भाषा, हर संस्कृति और हर पल इस संसार में जन्म लेने वाली सूचना और ज्ञान को
बिना किसी भेद-भाव के अपने अंदर समा लेने वाली इस अद्भुत
ज्ञान गंगा की आवश्यकता पर ही आज आधुनिकता के काले बादल मंडराने लगे हैं। न जाने कितनी
ही कठिनाइयों से निकल कर हमें ज्ञानवान बनाने के
लिए इक्कीसवीं सदी तक अपनी गोद में ज्ञान को लेकर बहने वाली यह ज्ञान गंगा आज इक्कीसवीं
सदी के अति आधुनिक समाज की आँखों में चुभने लगी है।
जिस ज्ञान को पाकर आज हमने आधुनिक यंत्रों का निर्माण किया है, उस ज्ञान को हम तक पहुँचाने का श्रेय इस ज्ञान गंगा को भी जाता है। पर हम शायद इस सच्चाई को भूल गए हैं, इसलिए तो आज हम अपने आधुनिक यंत्रों को इसके विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। क्या
हम डा. रंगानाथन के उस सिद्धांत को भूल गए हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि “The library
is a growing organism.”?
लाइब्रेरी
(पुस्तकालय) नामक यह ‘ज्ञान गंगा’ हमेशा से ही नए से नए यंत्रों के माध्यम से ज्ञान
का वितरण करने में विश्वास रखती आयी है। लाइब्रेरी का उद्देश्य हमेशा जल्दी से जल्दी
सही सूचना और ज्ञान
को, उसे जानने की इच्छा रखने वाले तक पहुँचाना रहा है। अपने इस उद्देश्य को पूरा करने
के लिए यह कितनी प्रतिबद्ध है, यह इस बात से ही पता चलता है कि सूचना और ज्ञान के वितरण के लिए
प्रयोग में लाये जाने वाले सभी आधुनिक माध्यमों को इसने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना
लिया है। चाहे वह computer, internet, ebooks, ereaders, ejournals, 3D printers,
audio-visual aids, CD/DVD, social media या cloud computing जैसी कोई भी नई आधुनिक
टेकनोलॉजी हो सभी को लाइब्रेरी ने सहर्ष स्वीकार किया है।
हाइब्रिड लाइब्रेरी, डिज़िटल लाइब्रेरी, या वर्चुअल लाइब्रेरी सभी नए नामों को इसने बदलते समय के साथ अपनाया है। ओपन एक्सेस की अवधारणा को भी डा. रंगानाथन ने बहुत पहले ही समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। लाइब्रेरी एक ऐसा सामाजिक मंच है जहाँ पर हर देश, भाषा और संस्कृति के लोग मिलकर अपने ज्ञान का आदान-प्रदान कर सकते हैं एवं अपने विचारों और ज्ञान को ओपन एक्सेस के माध्यम से आज की उच्च तकनीक द्वारा दूसरों तक तेज़ी से पहुंचा भी सकते हैं।
हाइब्रिड लाइब्रेरी, डिज़िटल लाइब्रेरी, या वर्चुअल लाइब्रेरी सभी नए नामों को इसने बदलते समय के साथ अपनाया है। ओपन एक्सेस की अवधारणा को भी डा. रंगानाथन ने बहुत पहले ही समाज के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। लाइब्रेरी एक ऐसा सामाजिक मंच है जहाँ पर हर देश, भाषा और संस्कृति के लोग मिलकर अपने ज्ञान का आदान-प्रदान कर सकते हैं एवं अपने विचारों और ज्ञान को ओपन एक्सेस के माध्यम से आज की उच्च तकनीक द्वारा दूसरों तक तेज़ी से पहुंचा भी सकते हैं।
लाइब्रेरी
ऐसी सामाजिक संस्था है जो किसी भी देश के भविष्य निर्माण में सहयोग दे सकती है। यह
ज्ञान गंगा ही नवीन अविष्कार करने वालों, भविष्य निर्माताओं और उच्च कोटि के विद्वानों
का निर्माण और जीवन भर वैचारिक भरण-पोषण करने का एक मात्र स्त्रोत है ।
कहीं हम लाइब्रेरीज़ (पुस्तकलयों) की ओर ध्यान न देकर भारत के भविष्य से खिलवाड़ तो नहीं कर रहे, कहीं हम आने वाली अपनी भावी पीढ़ी को इस ज्ञान गंगा के ज्ञान रूपी अमृत पान से दूर तो नहीं कर रहे, आज इन सवालों का जवाब अगर विद्वानों ने नहीं खोजा तो मुझे आशंका है कि भारत भविष्य में कहीं दूसरे देशों के मुकाबले सूचना और ज्ञान की दौड़ में पिछड़ न जाये।
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